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परमेश्वर के वचन

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2020年5月の記事一覧

प्रार्थना की क्रिया के विषय में

प्रार्थना की क्रिया के विषय में

किस प्रकार कोई सच्ची प्रार्थना में प्रवेश करता है?

प्रार्थना करते हुए तुम्हारा हृदय परमेश्वर के समक्ष शांतिपूर्ण होना चाहिए, और यह सच्चा होना चाहिए। तुम सच्चाई के साथ परमेश्वर से वार्तालाप कर रहे होत

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परमेश्वर के प्रकटन को उसके न्याय और ताड़ना में देखना

परमेश्वर के प्रकटन को उसके न्याय और ताड़ना में देखना

प्रभु यीशु मसीह के करोड़ों अनुयायियों के समान हम बाइबल की व्यवस्थाओं और आज्ञाओं का पालन करते हैं, प्रभु यीशु मसीह के विपुल अनुग्रह का आनंद लेते हैं, और प्रभु यीशु मसीह के नाम पर एक साथ इकट्ठे होते हैं,

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प्रार्थना की क्रिया के विषय में

प्रार्थना की क्रिया के विषय में

प्रार्थना करने के विषय में आधारभूत ज्ञान:

1. बिना सोचे-समझे वह सब न कहो जो मन में आता है। तुम्हारे हृदय में एक बोझ होना आवश्यक है, कहने का अर्थ है कि जब तुम प्रार्थना करो तो एक लक्ष्य होना चाहिए।

2.

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परमेश्वर को सदोम नष्ट करना ही होगा

परमेश्वर को सदोम नष्ट करना ही होगा

उत्पत्ति 18:26 यहोवा ने कहा, "यदि मुझे सदोम में पचास धर्मी मिलें, तो उनके कारण उस सारे स्थान को छोड़ूँगा।"

उत्पत्ति 18:29 फिर उसने उससे यह भी कहा, "कदाचित् वहाँ चालीस मिलें।" उसने कहा, "तो भी मैं ऐसा

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"देहधारण का रहस्य" पर परमेश्वर के वचन के चार अंशों से एक संकलन

"देहधारण का रहस्य" पर परमेश्वर के वचन के चार अंशों से एक संकलन

1. अनुग्रह के युग में, यूहन्ना ने यीशु का मार्ग प्रशस्त किया। वह स्वयं परमेश्वर का कार्य नहीं कर सकता था और उसने मात्र मनुष्य का कर्तव्य पूरा किया था। यद्यपि यूहन्ना प्रभु का अग्रदूत था, फिर भी वह परम

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XI सत्य की वास्तविकता में प्रवेश करने पर उत्कृष्ट वचन

XI सत्य की वास्तविकता में प्रवेश करने पर उत्कृष्ट वचन

(II) परमेश्वर से प्रार्थना और उसकी आराधना करने पर वचन

11. प्रार्थना किसी प्रकार का संस्कार नहीं है; यह लोगों और परमेश्वर के बीच एक सच्चा सायुज्य है, इसका गहन महत्व है। लोगों की प्रार्थनाओं से हम क्या

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यीशु का पहाड़ी उपदेश, प्रभु यीशु के दृष्टान्त, आज्ञाएँ

यीशु का पहाड़ी उपदेश, प्रभु यीशु के दृष्टान्त, आज्ञाएँ

1. यीशु का पहाड़ी उपदेश

धन्य वचन (मत्ती 5:3-12)

नमक और ज्योति (मत्ती 5:13-16)

व्यवस्था की शिक्षा (मत्ती 5:17-20)

क्रोध और हत्या (मत्ती 5:21-26)

व्यभिचार (मत्ती 5:27-30)

तलाक (मत्ती 5:31-32)

शपथ

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